आरती सियावर की
आरती करिये सियावर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
जगत में लीला विस्तारी कमल दल लोचन हितकारी ,
मुख पर अलके घुंघराली, मुकुट छवि लगती है प्यारी ,
मृदुल जब मुख मुस्काते है , छीन कर मन ले जाते है ,
नवल रघुवीर, हरे मन पीर, बड़े है वीर,
जयति जय करुणा सागर की
अवधपति रघुवर सुंदर की १
गले में हीरो का है हार, पीतपट ओढत राज दुलार ,
गगन की चितवन पर बलिहार किया है हमने तन मन वार,
चरण है कोमल कमल विशाल, छबीले दशरथ के है लाल ,
सलोने श्याम, नयन अभिराम, पूर्ण सब काम ,
सरितु है सकल चराचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की ,
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की २
अहिल्या गौतम की दारा, नाथ ने क्षण में निस्तारा ,
जटायु शबरी को तारा, नाथ केवट को उद्धारा ,
शरण में कपि भुशुण्डी आये, विभीषण अभय दान पाये
मान मद त्याग, मोह से भाग, किया अनुराग ,
कृपा है रघुवर जलधर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ३
अधम जब खल बढ़ जाते है, नाथ तब जग में आते हैं
विविध लीला दर्शाते है , धर्म की लाज बचाते हैं
बसों नयनो में श्री रघुनाथ मातुश्री जनकनंदिनी साथ ,
मनुज अवतार लिए हरबार, प्रेम विस्तार,
विनय है लक्ष्मण अनुचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ४
सियावर रामचंद्र की जय
पंडित दीनानाथ कराहे ,
श्रीराम मन्दिर , गुजरखेड़ी, (पुनासा)
जिला पूर्व निमाड़ - खंडवा (मध्य प्रदेश )
आरती करिये सियावर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
जगत में लीला विस्तारी कमल दल लोचन हितकारी ,
मुख पर अलके घुंघराली, मुकुट छवि लगती है प्यारी ,
मृदुल जब मुख मुस्काते है , छीन कर मन ले जाते है ,
नवल रघुवीर, हरे मन पीर, बड़े है वीर,
जयति जय करुणा सागर की
अवधपति रघुवर सुंदर की १
गले में हीरो का है हार, पीतपट ओढत राज दुलार ,
गगन की चितवन पर बलिहार किया है हमने तन मन वार,
चरण है कोमल कमल विशाल, छबीले दशरथ के है लाल ,
सलोने श्याम, नयन अभिराम, पूर्ण सब काम ,
सरितु है सकल चराचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की ,
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की २
अहिल्या गौतम की दारा, नाथ ने क्षण में निस्तारा ,
जटायु शबरी को तारा, नाथ केवट को उद्धारा ,
शरण में कपि भुशुण्डी आये, विभीषण अभय दान पाये
मान मद त्याग, मोह से भाग, किया अनुराग ,
कृपा है रघुवर जलधर की, अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ३
अधम जब खल बढ़ जाते है, नाथ तब जग में आते हैं
विविध लीला दर्शाते है , धर्म की लाज बचाते हैं
बसों नयनो में श्री रघुनाथ मातुश्री जनकनंदिनी साथ ,
मनुज अवतार लिए हरबार, प्रेम विस्तार,
विनय है लक्ष्मण अनुचर की , अवधपति रघुवर सुंदर की
आरती करिये सियावर की अवधपति रघुवर सुंदर की ४
सियावर रामचंद्र की जय
पंडित दीनानाथ कराहे ,
श्रीराम मन्दिर , गुजरखेड़ी, (पुनासा)
जिला पूर्व निमाड़ - खंडवा (मध्य प्रदेश )
अति सुंदर मैं इसकी कब से तलाश में था। यह कौनसे धर्म शास्त्र में उल्लेखित है? यह मूल आरती रचना किसकी है, श्रीमान अवगत करावे। सादर साधुवाद।
जवाब देंहटाएंJai shriRam.... Nice Aarti....
जवाब देंहटाएंभोत सुंदर आरती
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